हम स्त्रियां किसी से प्रेम नहीं करतीं......
हमें तो प्रेम है बस प्रेम के अहसास से!
हर रिश्ते में यह अहसास ही तलाशा करती हैं
जिसमें मिल जाए उसी की हो जाया करती हैं,
हमारे प्रेम का कोई रूप कोई आकार नहीं
जिस सांचे में डालो वैसा ही ढल जाएगा,
कभी बहन कभी प्रेयसी कभी बेटी बन
ये समर्पित रहेगा और समर्पण ही चाहेगा,
ये अखबारों की तारीखों जैसा रोज बदलता नहीं
ये वो आयते हैं जो सजदे में झुकी रहती हैं,
मान लेती हैं जिसको भी अपना
समस्त जीवन दुआएं देती हैं,
बदल जाओ तुम अगर बदलना हो
भवरों सी चंचलता दिखलाओ,
स्त्री तो होती है जड़ों के मानिंद
अपनी मिट्टी से जुड़ी रहती हैं,
टूटती नहीं ये अपमानों से
प्यार के बोल सुन सब्र खोती हैं,
ओढ़ लेती हैं धानी चुनर मुस्कानों की
और फिर किसी कोने में छुप रो लेती हैं.
- डॉ. निधि अग्रवाल
हमें तो प्रेम है बस प्रेम के अहसास से!
हर रिश्ते में यह अहसास ही तलाशा करती हैं
जिसमें मिल जाए उसी की हो जाया करती हैं,
हमारे प्रेम का कोई रूप कोई आकार नहीं
जिस सांचे में डालो वैसा ही ढल जाएगा,
कभी बहन कभी प्रेयसी कभी बेटी बन
ये समर्पित रहेगा और समर्पण ही चाहेगा,
ये अखबारों की तारीखों जैसा रोज बदलता नहीं
ये वो आयते हैं जो सजदे में झुकी रहती हैं,
मान लेती हैं जिसको भी अपना
समस्त जीवन दुआएं देती हैं,
बदल जाओ तुम अगर बदलना हो
भवरों सी चंचलता दिखलाओ,
स्त्री तो होती है जड़ों के मानिंद
अपनी मिट्टी से जुड़ी रहती हैं,
टूटती नहीं ये अपमानों से
प्यार के बोल सुन सब्र खोती हैं,
ओढ़ लेती हैं धानी चुनर मुस्कानों की
और फिर किसी कोने में छुप रो लेती हैं.
- डॉ. निधि अग्रवाल
वाह्ह...भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
भावपूर्ण
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteअत्यन्त सुन्दर ।।
ReplyDeleteनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 07 -09 -2017 को प्रकाशनार्थ 783 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
ReplyDeleteआपकी इस पस्तुति का लिंक 07-09-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2720 में दीिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’परमवीर चक्र से सम्मानित वीर सपूत धन सिंह थापा और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteभाव पूर्ण अभिव्यक्ति ... नारी के प्रेम मय वत्सल रूप को लिखा है जिसको नारी मन के क़रीब से ही देखा और महसूस किया जा सकता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ,आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर रचना । बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteहम स्त्रियां किसी से प्रेम नहीं करतीं......
ReplyDeleteमाफ करें मैं सहमत नहीं हूँ आपसे। इस धरा पर प्रेम का प्रथम सोपान स्त्री से ही मिला होगा अन्यथा मातृत्व व वात्सल्य जन्म भी न ले पाती। प्रेम का प्रकटीकरण करने हेतु ही ईश्वर ने स्त्री की रचना की होगी वर्ना इस धरा की मृदुलता कहीं आज भी भटक रही होती।
आदरणीय नीधि जी मैं आपसे सहमत नही होने हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ। मेरी शुभकामनाएँ।
अच्छा लेखन. मेरी शुभकामनायें.
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बहुत सुन्दर कविता है
ReplyDeleteBahut sundar.
ReplyDeleteYou may also like Free Movie Streaming Sites , Comments on girls pic