Monday, September 18, 2017

दस्तक देते कईं शब्द मेरे.....रश्मि वर्मा

सामर्थ्य नहीं अब शब्दों में
कहना कुछ भी है व्यर्थ तुम्हें।
अधरों के स्वर हो गए कंपित, 
अब रुँध चले हैं कंठ मेरे।
नयनों के अश्रु भी तुमसे
विनती कर के अब हार गए

मेरे संतापों के ताप से भी
ना रूद्ध ह्रदय के द्वार खुले
जो प्रश्न मेरे थे गए तुम तक
ना लौट के आया प्रत्युत्तर
दस्तक देते कईं शब्द मेरे
बैरंग चले आए मुझ तक
अब छोड़ दिया है आस सभी
भूला तेरा अपमान सभी
पशुता सा जो आघात किया
बेधा मन छल प्रतिघात किया
लो मुक्त किया हर बंधन से
अपने रूदन और क्रदन से
जी लो तुम मुक्त-मगन होकर
रच लो संसार नव-सृजन कर
- रश्मि वर्मा

7 comments:

  1. मन की पीड़ा का मार्मिक चित्रण करती सुंदर कविता।

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  2. वाह!दिल के उद्गारों की सुंदर अभिव्यक्ति.

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : काका हाथरसी, श्रीकांत शर्मा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. सुन्दर, सार्थक...
    लाजवाब प्रस्तुति...

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  5. दिल को छू गया । अतीसुन्दर रचना ।

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