Wednesday, September 13, 2017

दोनों को अधूरा छोड़ दिया.....फैज अहमद फैज

वो लोग बहुत खुशकिस्‍मत थे
जो इश्‍क को काम समझते थे
या काम से आशिकी रखते थे
हम जीते जी नाकाम रहे
ना इश्‍क किया ना काम किया
काम इश्‍क में आड़े आता रहा
और इश्‍क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया 
-फैज अहमद फैज

10 comments:

  1. क्या बात है.....
    वाह!!!
    लाजवाब...

    ReplyDelete
  2. वाह्ह....बहुत खूब।

    ReplyDelete
  3. वाह क्या ख़ूब। बेमिसाल। दिल को छूती पंक्तियाँ। जब कलम लिखती नही इबादत करती है, दुआ पढ़ती है, सज़दा करती है तो ऐसे तबसिरे लिखे जाते हैं।

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-09-17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2727 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  5. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 14 -09 -2017 को प्रकाशनार्थ 790 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

    ReplyDelete
  6. वाह !!!!! लेखनी के बादशाह को शत -- शत नमन | इनकी तारीफ में कोई क्या कहे ? क्या सूरज को चिराग दिखाना सही है ?

    ReplyDelete
  7. इस सुंदर रचना को साझा करने हेतु सादर आभार ।

    ReplyDelete
  8. सत्य का साक्षात्कार कराती सुन्दर रचना आभार ,
    "एकलव्य"

    ReplyDelete