मैं आज की नारी हूँ,
ये न समझना कि मैं बेचारी हूँ,
अबला हूँ, समझकर अत्याचार न करना,
बेचारी हूँ, समझकर बुरा व्यवहार न करना,
मुझ पर हाथ उठाओगे तो सौ हाथ उठेंगे,
एक सिर झुकाऊॅंगी तो सौ सिर झुकेंगे।
बहुत अत्याचार तुम्हारा सह चुकी,
जो कहना था वो मैं कह चुकी,
अब मुझे और न सताना,
मुझे दोबारा न पड़े, ये बताना।
कभी दबाव डालते हो,
कभी पढ़ने नहीं देते,
मुझे सपनों की चढ़ाई चढ़ने नहीं देते,
नन्हीं जान को पैदा होने से पहले मार देते हो,
बेटों पर अपनी जान भी वार देते हो ।
कल से मेरी आँखों में,
एक आँसूं भी नहीं आएगा,
कल से मेरे जीवन पर दुखों का अंधेरा नहीं छाएगा।
हो गई हूँ, मैं जागरुक आज,
जान गई हूँ, स्वार्थी है ये समाज,
दोगले तर्कों से पूर्णतया संतप्त -
घर में दुख हो तो मेरी बदकिस्मती होती है!
अगर घर में आयें खुशियां,
तो क्यों नहीं मेरी खुश-किस्मती होती?
क्यों रहता है, मेरा जीवन सूना,
क्यों मिलता है मुझे दुख दूना,
पर अब ऐसा नहीं होगा,
क्योंकि ऐसा मैं होने नहीं दूँगी,
दुखों के साए में खुशियों को खोने नहीं दूँगी।
जानते हो न,
जिनका कोई आदर न करता हो,
वो दूसरों का सत्कार नहीं करते।
जिनके दिल में नफ़रत भरी हो,
वो दूसरों से प्यार नहीं करते।
रोज़-रोज़ ये ख़बरें छपें अख़बारों में,
एक लड़की को ज़लील किया जाता है भरे बाज़ारों में,
सब चुपचाप खड़े ताकते रहते हैं,
कितना डरते हैं,
बस यूँ ही झांकते रहते हैं,
क्या एक आवाज़ उठा नहीं सकते?
क्या एक बेटी को बचा नहीं सकते?
अब मुझे खुद को ही काबिल बनाना पड़ेगा,
मुझे खुद ही कुछ करके दिखाना पड़ेगा,
अब तुम्हारे भरोसे नहीं रहूंगी,
कोई मदद करो ये नहीं कहूंगी।
मुझ में भी जान होती है,
मेरी भी एक पहचान होती है,
अब मैं अपने इरादों को
जज़्बातों की आग में जलने नहीं दूंगी,
अब मैं अपनी ज़िन्दगी को
उदासी के राग में ढलने नहीं दूंगी।
देखती हूँ,
अब कौन आएगा मेरी राह में,
अब नहीं हूँ,
किसी की दया की चाह में,
क्योंकि मैं आज की नारी हूँ,
ये न समझना कि मैं बेचारी हूँ।
-ऋतु पंचाल
कुमारी ऋतु पंचाल, जिसकी उम्र मात्र तेरह वर्ष,
नमन करती हूँ इनके साहित्यिक गुरु को...
इनके उज्जवल भविष्य की शुभ कामनाएँ
वाह !!!नमन है इनकी प्रतिभा को ।
ReplyDeleteप्रेरक ओजपूर्ण कविता
ReplyDeleteअब मुझे और न सताना,
ReplyDeleteमुझे दोबारा न पड़े, ये बताना।
वाह वाह।।। बहुत सधी संतुलित सार्थक रचना।
बहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteनमन लेखन शैली को....नमन ऐसी प्रतिभा को....
प्रेरणादायी बोल .....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ऋतु पांचाल ,बधाई
ReplyDeleteविचार करने को विवश करतीं है बहुत ही उम्दा विचार आभार ,"एकलव्य"
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