Saturday, September 2, 2017

वक़्त के साथ दौड़ता..वक़्त

आज मेरी सदा दीदी का जन्म दिन है..
प्रस्तुत है उन्हीं की लिखी एक कविता..

सब कुछ पा लेने के भ्रम में वह
जाने कितना कुछ 
खोता चला गया
...
टूटता रहा जब भी कुछ
वह उसे जोड़ने के क्रम में
कभी वादे करता
कभी मिन्नतें करता
कभी बांधकर गांठ
किसी न किसी तरह से
अपना काम चला ही लेता
...
होता मन जब भी प्रेम में
फूलों को तोड़ता
तुमसे स्नेह का रिश्ता जोड़ता
...
क्रोध की अग्नि में जब वह
अपना धैर्य खो देता
मैं की सर्वज्ञता में
रिश्तों को तोड़ता
....
वक़्त के साथ दौड़ता
इसको उसको सबको
पीछे छोड़ता
खुद का खुद से नाता तोड़ता !!
-सीमा 'सदा' सिंघल

7 comments:

  1. जन्म दिवस की ढेरों मंगलकामनाऐं ! आपकी लेखनी और प्रखर हो।

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  2. आपकी इस स्नेहमयी प्रस्तुति से मन भाव विभोर हो गया ----आभार सहित शुक्रिया आप सभी का ...सादर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-09-2017) को "वक़्त के साथ दौड़ता..वक़्त" (चर्चा अंक 2716) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. भावपूर्ण रचना. सदा दी को जन्मदिन की शुभकामनाएं.

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