Saturday, April 5, 2014

तुम इस शहर में सुकूँ ढूँढते हो...........पंकज शर्मा


तुम इस शहर में सुकूँ ढूँढते हो
बड़े ना-समझ हो क्या कहाँ ढूँढते हो

तामीर थी ताज या जुनून-ए-मौहब्बत
यह तुम पे है तुम क्या यहां ढूँढते हो

क्या तुम्हारी यह हालत ना-काफ़ी बयाँ है
जो अब तक तुम उसमे मेहरबाँ ढूँढते हो

हम तो शुमार हैं मिसाल-ए-तन्हा
और तुम मुझमें कोई कारवां ढूँढते हो

न रहता है क़ासिद अब कोई यहाँ पर
मेरा पता ले के मुझको कहां ढूँढते हो

हर तरफ हज़ारों आदमी ही मिलेंगे
न मिलेगा तुमको जो इन्साँ ढूँढते हो

बदल जाता बयाँ है दरमियाँ दिल-ओ-ज़ुबाँ के
यहाँ तुम उल्फ़त का जहां ढूँढते हो

तुम्ही बोलो मुमकिन हो मुलाकात कैसे
हम यहाँ ढूँढते हैं तुम वहाँ ढूँढते हो

यह हालात हैं कि दिल लहू ढूँढता है
और तुम मेरी आँखों में फ़ुग़ाँ ढूँढते हो

अपने हाथों से हस्ती को मिटाया था जिसकी
क्यूँ भला आज उसके निशाँ ढूँढते हो

यह पेशा है उसका, तेरा बनना बिगड़ना
कोई फ़ैज़ क्या तुम यहाँ ढूँढते हो

वो है पिनहाँ हरेक ज़र्रे में जहां के
तुम जिसका कब से निशाँ ढूँढते हो

क्या हुए पहले वाकिफ़ हक़ीक़त से नहीं थे
जो आज कोई फिर गुलिस्ताँ ढूँढते हो

-पंकज शर्मा
स्रोतः साहित्य कुंज 

8 comments:

  1. एक बहुत अच्छी रचना पढ़कर मन प्रसन्न हो गया


    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ..कल्पना नहीं कर्म :))

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  2. बदल जाता बयाँ है दरमियाँ दिल-ओ-ज़ुबाँ के
    यहाँ तुम उल्फ़त का जहां ढूँढते हो

    बहुत सुंदर ! बेहतरीन अभिव्यक्ति !

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  3. MANBHAWAN SHABDO KA PRAYOG.....WAH

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  4. खूबसूरत रचना..!!

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  5. सुंदर ग़ज़ल...

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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