प्यार, एक शब्द भर होता
तो पोंछ देती उसे
अपने जीवन के कागज से,
प्यार, होता अगर कोई पत्ता
झरा देती उसे
अपने मन की क्यारी से
प्यार, होता जो एक गीत,
भूल चुकी होती मैं उसे
कभी गुनगुनाकर,
मगर, सच तो यह है कि
प्यार तुम हो,
तुम!
और तुम्हें
ना अपने जीवन से पोंछ सकती हूं,
ना झरा सकती हूं
मन की क्यारी से,
ना भूल सकती हूँ
बस एक बार गुनगुनाकर,
क्योंकि ओ मेरे विश्वास,
प्यार मेरे लिए तुम हो साक्षात,
सदा आसपास,
बनकर एक प्यास।
-फाल्गुनी
(वेब दुनिया से)
अक्षरश: सत्य ! बहुत ही सुंदर रचना !
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteSundar rachna
ReplyDeleteसही कहा -प्यास होती ही ऐसी है !
ReplyDeletebahut sundar rachna ...
ReplyDeleteसुंदर और भावपूर्ण.
ReplyDeleteजग से कोई भाग ले प्राणी मन से भाग न पाये...
ReplyDeleteKya bat.....sundar
ReplyDeleteआसान नहीं होता प्रेम को मिटाना .. उम्र थोड़ी हो जाती है ..
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