इक़ दर्द छुपा हो सीने में,तो मुस्कान अधूरी लगती है,
जाने क्यों,बिन तेरे,मुझको हर शाम अधूरी लगती है,
कहना है,तुमसे दिल को जो,वो बात जरुरी लगती है,
तेरे बिन मेरी गज़लों की,हर बात अधूरी लगती है,
दिल भी तेरा,हम भी तेरे,एक आस जरुरी लगती है,
अब बिन तेरे,मेरे दिल को,हर सांस अधूरी लगती है,
माना की जीने की खातिर,कुछ आन जरुरी लगती है,
जाने क्यों,"मन"को तेरे बिन,ये शान अधूरी लगती है,
मनोज सिंह"मन"
जाने क्यों,बिन तेरे,मुझको हर शाम अधूरी लगती है,
कहना है,तुमसे दिल को जो,वो बात जरुरी लगती है,
तेरे बिन मेरी गज़लों की,हर बात अधूरी लगती है,
दिल भी तेरा,हम भी तेरे,एक आस जरुरी लगती है,
अब बिन तेरे,मेरे दिल को,हर सांस अधूरी लगती है,
माना की जीने की खातिर,कुछ आन जरुरी लगती है,
जाने क्यों,"मन"को तेरे बिन,ये शान अधूरी लगती है,
मनोज सिंह"मन"
प्राप्ति स्रोतः ग़ज़ल संध्या
https://www.facebook.com/GazalaSandhya?ref=hl
https://www.facebook.com/GazalaSandhya?ref=hl
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteलाजवाब शेर हैं इस गज़ल के ...
ReplyDeleteअति सुन्दर...बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण
ReplyDeleteमन को छूती हुई
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है----
और एक दिन
बेहतरीन, उम्दा !!
ReplyDeleteUttam ......
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