Friday, April 18, 2014

बुरा है तो भला क्या है..........राजीव कुमार


बुरा है तो भला क्या है, खलिश है तो खला क्या है
सवालों से हुआ क्या है, सवालों में भला क्या है

मुकद्दर अपने घर पे है, मुसीबत हर डगर पे है,
जो होना है हुआ ही है, दुवाओं से टला क्या है/

जमाना जिद पे है कायम, नफासत हो गयी गायब,
ये ही दौर ए तरक्की है, हवाओं में घुला क्या है/

भयानक है बड़ा मंजर, हर इक हाथों में है खंजर,
ये ख्वाहिश है की साजिश है,दिलों में ये पला क्या है/

शिकन माथे की गहरी है, मादर-ए-हिन्द कहती है,
गुलामी फिर से आनी है, गुलामों से गिला क्या है /

ये हुस्न ओ इश्क़ के जलवे, जहाँ जैसे हैं रहने दो,
नज़ाकत और दिखावे के, अदाओं से मिला क्या है/

-राजीव कुमार
प्राप्ति स्रोतः ग़ज़ल संध्या (फेसबुक)
https://www.facebook.com/GazalaSandhya?ref=hl
 

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