Thursday, April 17, 2014

प्रवासी कविता : बसंत-गीत.......शकुन्तला बहादुर


सखि बसंत आ गया
सबके मन भा गया
धरती पर छा गया
सुषमा बिखरा गया

आमों में बौर लदे
कुहू-कुहू भली लगे
बागों में फूल खिले
भौंरे हैं झूम चले

मंद-मंद पवन चली
मन की है कली खिली
शिशिर शीत भाग गया
सुखद बसंत आ गया

खुशियां बरसा गया
सखि बसंत आ गया।

- शकुन्तला बहादुर
लेखिका एन. आर. आई. हैं

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