वो “इश्क” है , पर न इश्क समझता है
अफ़सोस मेरी उल्फत को वो नफरत समझता है !
मुबारक हैं उसको ऊंचाईयां आजाद परिंदों की,
पिंजड़े की कशमशाहट को वो बगावत समझता है !
इफ्तिखार हासिल है उसे बेबाक लहरों का ,
साहिल को वो बस रेत की हरकत समझता है !
बन गया है खुदा खुद, अपने ही पैमानों पर,
इबादत को मेरी बेअदब हिमाकत समझता है !
चाँद है आशुफ्ता वो तारों की इक्तिजा में ,
चाहत को अपनी ना मेरी हसरत समझता है !
अफ़सोस मेरी उल्फत को वो नफरत समझता है !
मुबारक हैं उसको ऊंचाईयां आजाद परिंदों की,
पिंजड़े की कशमशाहट को वो बगावत समझता है !
इफ्तिखार हासिल है उसे बेबाक लहरों का ,
साहिल को वो बस रेत की हरकत समझता है !
बन गया है खुदा खुद, अपने ही पैमानों पर,
इबादत को मेरी बेअदब हिमाकत समझता है !
चाँद है आशुफ्ता वो तारों की इक्तिजा में ,
चाहत को अपनी ना मेरी हसरत समझता है !
-दिव्येन्द्र कुमार
Umda Panktiyan.....
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteThanx for sharing and appreciation !
ReplyDeleteमर गया वो ज़ाहिर-बीं अपनी मौत से पहले..,
ReplyDeleteहबाबी दुनिआ को जो आक़बत समझता है.....
ज़ाहिर-बीं = जाहिर परस्त, जो केवल दृष्यमान पर विश्वास करता हो
हबाबी दुनिआ = पानी के बुलबुले जैसा संसार, क्षणभंगुरी दुनिया
आजाद परिंदों की परवाज उसको है मुबारक..,
नफ़स की कश्मकश को वो बगावत समझता है.....
Awesome @ Neetu Singhal
DeleteNice Lines*
ReplyDeletebahut achhi prastuti hai*
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बहुत उम्दा...
ReplyDeleteAti sunder
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