पुकारती है ख़ामोशी मेरी फुगां की तरह
निग़ाहें कहती है सब राज-ए-दिल जबां की तरह
जला के दाग-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया
बहार आई मेरे बाग में खिज़ां की तरह
तलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मी कोई,
हमारे पांवों में चक्कर है आसमां की तरह
छुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों को
लगा दे आग चमन में भी आशियां की तरह
हम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसा
हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसतां की तरह
...............................
फुगां- दुख में रोना, असीरों- कैदी,
ज़ोफ़- कमजोरी, संग-ए-आसतां- दहलीज
निग़ाहें कहती है सब राज-ए-दिल जबां की तरह
जला के दाग-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया
बहार आई मेरे बाग में खिज़ां की तरह
तलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मी कोई,
हमारे पांवों में चक्कर है आसमां की तरह
छुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों को
लगा दे आग चमन में भी आशियां की तरह
हम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसा
हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसतां की तरह
...............................
फुगां- दुख में रोना, असीरों- कैदी,
ज़ोफ़- कमजोरी, संग-ए-आसतां- दहलीज
-दाग दहलवी
जन्मः 25 मई, 1831, दिल्ली
अवसानः 17 मार्च, 1905, हैदराबाद
जन्मः 25 मई, 1831, दिल्ली
अवसानः 17 मार्च, 1905, हैदराबाद
हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसतां की तरह................आह आह आह वाह वाह वाह
ReplyDeleteये शहर क्या है दुनिया को कर डालूँ फ़तह मैं ॥
इक बार फ़क़त दिल में तेरे पालूँ जगह मैं ॥
बन जाऊँ तेरा जिन्न तुझे आक़ा बना लूँ ,
हर हुक़्म की तामील करूँ ठीक तरह मैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
http://www.drhiralalprajapati.com/2013/04/153.html
खूबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जलियाँवाला बाग़ हत्याकाण्ड की ९५ वीं बरसी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteSharing on facebook::)
ReplyDeleteगालिब,जौक व दाग उर्दू अदीब के नायाब शायर रहे हैं, दाग से रूबरू कराने का शुक्रिया।
ReplyDeleteएक उम्दा रचना पढ़वाने के लिए आभार...
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteपंजा पंजा पंजा पंजा, कमल कमल कमल कमल, साईकिल साइकिल साइकिल साइकिल, हाथी हाथी हाथी हाथी, झाड़ू झाड़ू झाड़ू झाड़ू,
ReplyDeleteचतुर संचार साधन ऐसा जपने के रूपए लेते हैं, बाक़ी मूर्ख फ़ोकट में जपते हैं, बोले तो 'बिना पेड की न्यूज'.....