आपका मत
अनिवार्य है....
महिला हों या
पुरुष, आप
चुनावों के जरिये
चुनी जाने वाली
सरकार....
व्यक्ति विशेष नहीं
हर व्यक्ति
के जीवन को
प्रभावित करेगी।
फिर हम
इन चुनावों से
अछूते क्यों रहें !!
आईये...
इस मत-महोत्सव
को सफल बनाएँ
सोच-समझकर
न्याय पूर्वक
मतदान करें....
और लोकतंत्र के
इस अद्भुत
मत-महोत्सव में
अपनी भागीदारी
दर्ज करें
और ध्यान रखें
कभी भी
नोटा का
उपयोग न करें
इससे आपका नहीं
अयोग्य प्रत्याशी
का भला होगा....
-यशोदा
(प्रेरणा प्राप्त मधुरिमा से)
उम्मीद है कि लोग आपकी बात ज़रूर मानेंगे दीदी !
ReplyDeleteसाद
कल 04/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
ReplyDeleteएक कहाउत कही गई,धुनी धरे बहु थोड़ ।
चाहे केतक पीट लौ, गदहा बने न घोड़ ।१३८७।
भावार्थ : -- अल्पतम शब्दों के साथ एक कहावत कही गई है । " चाहे कितना ही पीट लो गधा घोड़ा नहीं बन सकता ॥ "
गधे में उत्त्म गधा होता ही है कोई ना कोई
ReplyDeleteधोबी को पता होत है लेवे अपने लिये वोई :)
jee dhanyabaad
ReplyDeleteबात सही है..
ReplyDeleteNOTA का प्राविधान सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर चुनाव आयोग द्वारा किया गया है। जिन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इसके पक्ष में दलीलें दी होंगी उनके अपने कुछ निहित स्वार्थ रहे होंगे। परंतु 'स्वस्थ-लोकतन्त्र' के लिए यह व्यवस्था और भी ज़्यादा घातक है जैसा कि प्रस्तुत उदाहरणों से सिद्ध होता है। कुछ सरकारी कर्मचारियों के संगठन व कुछ राजनीतिक दल अधिकाधिक 'नोटा' प्रयोग का प्रचार कर रहे हैं इससे तो और भी कम लोकप्रिय व्यक्ति के चुने जाने के खतरे बढ़ रहे हैं। जो लोग किसी भी उम्मीदवार को योग्य नहीं समझते हैं वे खुद पहल करके आगे क्यों नहीं आते हैं। अपने कर्तव्यों का पालन न करने वाले लोग ही 'नोटा' का प्रयोग अथवा चुनाव बहिष्कार की अपीलें करते हैं जो कि 'संसदीय लोकतन्त्र' के लिए घातक है व ऐसा करना एक निरंकुश तानाशाही का ही मार्ग प्रशस्त करेगा।
ReplyDeletebilkul sahi mat dena hamara adhikar hi nhi kartavya bhi hai. achhi rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen