उसे हमने बहुत ढूंढा न पाया
अगर पाया तो खोज अपना न पाया
जिस इन्सां को सगे-दुनिया न पाया
फ़रिश्ता उसका हमपाया न पाया
मुक़द्दर से ही गर सूदो-ज़िया है
तो हमने यां न कुछ खोया न पाया
अहाते से फ़लक के हम तो कब के
निकल जाते मगर रस्ता न पाया
जहां देखा किसी के साथ देखा
कहीं हमने तुझे तन्हा न पाया
किये हमने सलामे-इश्क तुझको!
कि अपना हौसला इतना न पाया
न मारा तूने पूरा हाथ क़ातिल!
सितम में भी तुझे पूरा न पाया
लहद में भी तेरे मुज़तर ने आराम
ख़ुदा जाने कि पाया या न पाया
कहे क्या हाय ज़ख्में-दिल हमारा
ज़ेहन पाया लबे-गोया न पाया
...............
हमपायाः बराबर का, सूदो-ज़ियाः लाभ-हानि
लहदः कब्र, मुज़तरः प्रेम-रोगी, लबे-गोयाः वाक शक्ति
-श़ायर ज़नाब मोहम्मद शेख इब्राहिम ‘ज़ौक़’
सौजन्यः रसरंग, दैनिक भास्कर, 20 अक्टूबर, 2013
अगर पाया तो खोज अपना न पाया
जिस इन्सां को सगे-दुनिया न पाया
फ़रिश्ता उसका हमपाया न पाया
मुक़द्दर से ही गर सूदो-ज़िया है
तो हमने यां न कुछ खोया न पाया
अहाते से फ़लक के हम तो कब के
निकल जाते मगर रस्ता न पाया
जहां देखा किसी के साथ देखा
कहीं हमने तुझे तन्हा न पाया
किये हमने सलामे-इश्क तुझको!
कि अपना हौसला इतना न पाया
न मारा तूने पूरा हाथ क़ातिल!
सितम में भी तुझे पूरा न पाया
लहद में भी तेरे मुज़तर ने आराम
ख़ुदा जाने कि पाया या न पाया
कहे क्या हाय ज़ख्में-दिल हमारा
ज़ेहन पाया लबे-गोया न पाया
...............
हमपायाः बराबर का, सूदो-ज़ियाः लाभ-हानि
लहदः कब्र, मुज़तरः प्रेम-रोगी, लबे-गोयाः वाक शक्ति
-श़ायर ज़नाब मोहम्मद शेख इब्राहिम ‘ज़ौक़’
सौजन्यः रसरंग, दैनिक भास्कर, 20 अक्टूबर, 2013
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार।
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteइस सुंदर गज़ल को साझा करने का शुक्रिया।
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