Sunday, October 20, 2013

रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है..............सौरभ शेखर


ताक़त का जिसको नश्शा हो जाता है
उसका लहजा ज़हर-बुझा हो जाता है

रुकता है इक रहरौ पास तमाशे के
देखते-देखते इक मजमा हो जाता है

और बहारों से क्या शिकवा है मुझको
ख़ाली दिल का ज़ख्म हरा हो जाता है

आँखों वाले लोग ही कौन से बेहतर हैं
आँखों को भी तो धोखा हो जाता है

कुछ अच्छा करने की कोशिश में मुझसे
काम हमेशा कोई बुरा हो जाता है

क्यों अम्बर के तारे गिनने लगता हूँ
रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है

बिखरी खुशियों को आवाज़ लगाता हूँ
ग़म का दस्ता जब यकजा हो जाता है

सूरज की वहशत बढती जाती है और
‘धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है’

‘सौरभ’ प्यार ज़माने से कुछ हासिल कर
सबको घर,गाड़ी,पैसा हो जाता है

सौरभ शेखर 09873866653

10 comments:


  1. बिखरी खुशियों को आवाज़ लगाता हूँ
    ग़म का दस्ता जब यकजा हो जाता है

    सूरज की वहशत बढती जाती है और
    ‘धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है’-------
    अदभुत-------



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  2. और बहारों से क्या शिकवा है मुझको
    ख़ाली दिल का ज़ख्म हरा हो जाता है...........
    दिल को चूने वाला एक एक शब्द

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (21-10-2013)
    पिया से गुज़ारिश :चर्चामंच 1405 में "मयंक का कोना"
    पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बिखरी खुशियों को आवाज़ लगाता हूँ
    ग़म का दस्ता जब यकजा हो जाता है,,,

    बहुत उम्दा प्रस्तुति ...!

    RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.

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  5. बिखरी खुशियों को आवाज़ लगाता हूँ
    ग़म का दस्ता जब यकजा हो जाता

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ।

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  6. bahut hi shanaar post...............

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  7. bahut vadiya post...........badhai

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  8. ‘सौरभ’ प्यार ज़माने से कुछ हासिल कर
    सबको घर,गाड़ी,पैसा हो जाता है

    बहुत सुन्दर समन्वय

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  9. सुन्दर प्रस्तुति।

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