समय खुद को
इतनी जल्दी दोहराएगा
अन्दाजा नहीं था
अभी कुछ दशक
पहले ही तो
छोड़कर गया था
अपने पिता को
आज मुझे
मेरा पुत्र छोड़ कर
गया है
उस समय भी
पिता की
आँखे भर आई होंगी
निश्चित ही
मैंने देखा नहीं था
पलटकर
मैंनें जो फैसला लिया था
वह परम्परा बन जाएगी
अन्दाज़ा ही नहीं था
-उर्मिला निमजे
सौजन्यः मधुरिमा, बुधवार, 9 अक्टूबर, 2013
-उर्मिला निमजे
सौजन्यः मधुरिमा, बुधवार, 9 अक्टूबर, 2013
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteयशोदा क्या उर्मिला निमजे जी का कोई ब्लॉग भी है??
सस्नेह
अनु
बहुत मार्मिक ।
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