वही भीगा सा मौसम है, बरस के चल दिये बादल,
वही ठण्डी हवाओँ से लिपट के सो रहा हूँ मैं,
वही उन्माद का मौसम, वही बेचैनियोँ के पल,
वही उन्माद का मौसम, वही बेचैनियोँ के पल,
तुम्हारी यादों को सीने से लगा के रो रहा हूँ मैं...
तुम्हारी दीद की खातिर मैं रुकता हूँ वहीँ अब भी,
जहाँ हमने बुने थे ख्वाब जमाने को परे रखकर,
तुम्हारी दीद की खातिर मैं रुकता हूँ वहीँ अब भी,
जहाँ हमने बुने थे ख्वाब जमाने को परे रखकर,
तुम इक दिन लौट आओगे, यकीँ मै अब भी रखता हूँ मैं...
तेरी आँखेँ समन्दर थीँ, मेरी बातेँ समन्दर थीँ,
जो सहरा सी लगे हर पल,यही रातेँ समन्दर थीँ,
ख़फा होना मना लेना, मुहब्बत की निशानी थी,
मगर यूँ रुठ जाओगे हमेशा के लिये हमसे,
कभी सोचा ना था हमने, कभी चाहा ना था हमने,
वही सुनसान से रस्ते वही पर आस आँखो की,
वही खामोश आलम मे चुभे आवाज साँसो की,
कोई आहट नहीँ तेरी कोई खत भी नहीँ आया ,
मगर तुम लौट आओगे यकीँ मैँ अब भी रखता हूँ मैं...
प्रखर मालवीय 'कान्हा'
8057575552
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (22-10-2013) मंगलवारीय चर्चा---1406- करवाचौथ की बधाई में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut bahut dhanyawad Mayank ji .....saadar
ReplyDeletekanha
Is jarra-navaji ke liye aabhar kubul farnaye'n Yashoda ji...
ReplyDeleteSaadar
Kanha
.tahe-dil se shukriya janab...
ReplyDeletesaadar