सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है
कल का मज़हब अब फ़ितना हो जाता है
ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
पत्ता पत्ता “राज ” बग़ावत कर बैठे
जंगल का जंगल नंगा हो जाता है
-राजमोहन चौहान 8085809050
परबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है
कल का मज़हब अब फ़ितना हो जाता है
ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
पत्ता पत्ता “राज ” बग़ावत कर बैठे
जंगल का जंगल नंगा हो जाता है
-राजमोहन चौहान 8085809050
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : रावण जलता नहीं
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteइश्क पेच बगावत कर बैठे..,
ReplyDeleteशाखे-गुल बेपरदा हो जाता है.....
इश्क पेच = एक बेल जो सुन्दरता के लिए लगाई जाती है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (15-10-2013) "रावण जिंदा रह गया..!" (मंगलवासरीय चर्चाःअंक1399) में "मयंक का कोना" पर भी है!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहते सहते सच झूठा हो जाता है
ReplyDeleteपरबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है
कल का मज़हब अब फ़ितना हो जाता है
ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
पत्ता पत्ता “राज ” बग़ावत कर बैठे
जंगल का जंगल नंगा हो जाता है
-राजमोहन चौहान 8085809050
बहुत खूब ,बहुत खूब ,बहुत खूब।