लहजा भी इस ख़याल से बदला कभी कभी
नुक़सान करने लगता है मीठा कभी कभी
खतरे में डाल सकती है ऊंची कोई उड़ान
खुद पर भरोसा हद से ज़ियादा कभी कभी
खुद्दारियों का भारी लिबादा उतारकर
अपने ही हक़ को भीख में माँगा कभी कभी
थक हार कर ये तेरे तसव्वुर में लौटना
आसान लगने लगता है जीना कभी कभी
मेरी हथेलियों कि दरारों से पूछ लो
बदला भी है नसीब का लिक्खा कभी कभी
तय करते करते फासले घुटनो पे आ गए
इतना तवील होता है रस्ता कभी कभी
-सचिन अग्रवाल
नुक़सान करने लगता है मीठा कभी कभी
खतरे में डाल सकती है ऊंची कोई उड़ान
खुद पर भरोसा हद से ज़ियादा कभी कभी
खुद्दारियों का भारी लिबादा उतारकर
अपने ही हक़ को भीख में माँगा कभी कभी
थक हार कर ये तेरे तसव्वुर में लौटना
आसान लगने लगता है जीना कभी कभी
मेरी हथेलियों कि दरारों से पूछ लो
बदला भी है नसीब का लिक्खा कभी कभी
तय करते करते फासले घुटनो पे आ गए
इतना तवील होता है रस्ता कभी कभी
-सचिन अग्रवाल
Kya sach likha he--Khud pe hud se jyada bharosa na kro. Shardha , Lagan bina ahm ke taqdeer badl jati hai.Vikrami Samvat 2070 naya Saal mubarak
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (05-11-2013) भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर : चर्चामंच 1420 पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में
भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteआभार !
bhut khoob
ReplyDeleteसुन्दर गजल..
ReplyDeletebehtreen gazal...
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