हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुलाकातों के बाद
फिर बनेंगे आशना* कितनी मुदारातों के बाद
[*acquainted, friendly]
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
थे बोहत बे-दर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क के
थीं बोहत बे-मेहर सुबहें मेहरबां रातों के बाद
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बाद
उनसे जो कहने गए थे फैज़ जान सदके किये
अनकही ही रह गयी वोह बात सब बातों के बाद
-फैज़ अहमद फैज़
फिर बनेंगे आशना* कितनी मुदारातों के बाद
[*acquainted, friendly]
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
थे बोहत बे-दर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क के
थीं बोहत बे-मेहर सुबहें मेहरबां रातों के बाद
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बाद
उनसे जो कहने गए थे फैज़ जान सदके किये
अनकही ही रह गयी वोह बात सब बातों के बाद
-फैज़ अहमद फैज़
सौजन्यः बेस्ट ग़ज़ल.नेट
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,विजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति,......विजयादशमी की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति,......विजयादशमी की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
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