Wednesday, October 23, 2013

चांदी-सा पानी सोना हो जाता है..............आलोक मिश्रा


तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है
बस, ख़ुद से मिलना-जुलना हो जाता है

नींद को बेदारी का बोसा मिलते ही
हरा-भरा सपना पीला हो जाता है

अक्स उभरता है इक पहले आँखों में
फिर सारा मंज़र धुँधला हो जाता है

नाचने लगती हैं जब किरनों की परियाँ
चांदी-सा पानी सोना हो जाता है

…तो पलकों से ओस टपकने लगती है
शाम का सुरमा जब तीखा हो जाता है

चुभने लगता है सूरज की आँख में जो
वो दरिया इक दिन सहरा हो जाता है

अब तो ये नुस्ख़ा भी काम नहीं करता-
रो लेने से जी हल्का हो जाता है

दीवारों से बातें करने लगता हूँ
बैठे-बैठे मुझको क्या हो जाता है

ठीक कहा था उस मस्ताने जोगी ने
“ धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है “

आलोक मिश्रा 09876789610

5 comments:


  1. नींद को बेदारी का बोसा मिलते ही
    हरा-भरा सपना पीला हो जाता है-------

    बहुत सुंदर अनुभूति बेहतरीन कहन
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर

    आग्रह है---
    करवा चौथ का चाँद ------

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  2. मन की बात ------------
    बहुत सुंदर प्रस्तुति----------।
    धनयाबाद

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  3. हर शेर गहरे अर्थ समेटे हुए है.

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