Friday, May 29, 2020

समय की शिला पर ....शम्भुनाथ सिंह

समय की शिला पर मधुर चित्र कितने
किसी ने बनाये, किसी ने मिटाये।

किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी
किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूंद पानी
इसी में गये बीत दिन ज़िन्दगी के
गयी घुल जवानी, गयी मिट निशानी।
विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने
धरा ने उठाये, गगन ने गिराये।

शलभ ने शिखा को सदा ध्येय माना,
किसी को लगा यह मरण का बहाना,
शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया
तिमिर में उसे पर मिला क्या ठिकाना?
प्रणय-पंथ पर प्राण के दीप कितने
मिलन ने जलाये, विरह ने बुझाये।

भटकती हुई राह में वंचना की
रुकी श्रांत हो जब लहर चेतना की
तिमिर-आवरण ज्योति का वर बना तब
कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की।
नयन-प्राण में रूप के स्वप्न कितने
निशा ने जगाये, उषा ने सुलाये।

सुरभि की अनिल-पंख पर मौन भाषा
उड़ी, वंदना की जगी सुप्त आशा
नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा।
किसी के चरण पर वरण-फूल कितने
लता ने चढ़ाये, लहर ने बहाये।
- शम्भुनाथ सिंह
मूल रचना


6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. स्मृतिशेष शम्भुनाथ सिंह जी की यह कालजयी रचना है |हिंदी नवगीत और गीत साहित्य उनके सभी प्रयासों का सदैव ऋणी रहेगा |

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  3. बहुत खूबसूरत रचना,मन को हर्षा गई

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