......... और एक दिन
झिंगुर ने
झिंगुरानी से यह कहा-
प्रिय.....
प्यार,कर्म,विश्वास
मिलाकर
जो दिवार हम
खड़ी किये
चलो-चलो
फिर से रंगते हैं
आखिर हम-तुम
क्यों लड़ते हैं ?
क्यों न आज हम
उन लम्हों की
कसमें खायें
सूर्य,चन्द्र और
अग्नि-वरुण-जल
साथ चले थे.....
क्यों न आज
हम
उन लम्हों का
जश्न मनायें
जहाँ हमारे स्वप्न
पले थे.........
क्यों न शून्य में
अपने दिल की
धड़कन खूब
गुँजायें
कोई नाद कहे
कोई ध्रुपद कहे
कोई ओम् कहे
हम सबको साथ मिलायें ..
-मृदुला प्रधान
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 07 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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