जो हम आइनें में सवरनें लगे।
हमें देखकर वो मचलनें लगे।।
नशा इस कदर उनपे छाया के फिर।
वो तो नींद में यारों चलने लगे।।
जो आयी कयामत न पूछों ये तुम।
सरे बज्म ही वो बहकने लगे।।
न पूछों मुहब्बत में हाल फिर।
वो शम्मा के जैसे पिघलने लगे।।
गजब की कहानी लिखी शाम तक।
हुई शाम वो फिर सँभलने लगे।।
कहूं आगे कुछ तो बहकना नही।
वो करके नशा फिर झिझकने लगे।।
-प्रीती श्रीवास्तव
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह , बहुत खूब !!
ReplyDeleteइश्क में अश्क तो स्वाभाविक है । वाह !! श्रंगार रस से परिपूर्ण !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह!!!
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