जीवन-यात्रा में
बूँद भर तृप्ति की चाह लिये
रेगिस्तान-सी मरीचिका
में भटकता है मन,
छटपटाहटाता,
व्याकुलता से भर
गर्म रेत के अंगारें को
अमृत बूँद समझकर
अधरों पर रखता है,
प्यासे कंठ की तृषा मिटाने को
झुलसता है,
तन की वेदना में,
मौन दुपहरी की तपती
पगलाई गर्म रेत की अंधड़
से घबराया मन छौना
छिप जाना चाहता है
बबूल की परछाई की ओट में
घनी छाँह का
भ्रम लिये,
बारिश की आस में
क्षितिज के शुष्क किनारों को
रह-रहकर
ताकती मासूम आँखें
नभ पर छाये
मंडराते बादलों को देखकर
आहृलादित होती है,
स्वप्न बुनता है मन...
भुरभुरी रेत से
इंद्रधनुषी घरौंदें बनाने का
बारिश की बूँदें
देह से लिपटकर,
देह को भींगाकर,
देह को सींचकर
देह के भावों को
जीवित करती है
देह की कोंपल पर लगे
पुष्प की सुगंध के
आकर्षण में
भ्रमित हुआ मन
भूल जाता है
सम्मोहन में
पलभर को सर्वस्व ,
देह की अभेद्य
दीवार के भीतर
पानी की तलाश में
सूखी रेत पर रगड़ाता
अनछुआ मन
मरीचिका के भ्रम में
तड़पता रहता है
परविहीन पाखी-सा
आजीवन।
-श्वेता सिन्हा
देह, मन और प्रकृति के विशृंखलित विभ्रम को सहेजता स्वप्न!
ReplyDeleteभ्रमित हुआ मन
ReplyDeleteभूल जाता है
सम्मोहन में
पलभर को सर्वस्व ,
देह की अभेद्य
दीवार के भीतर
पानी की तलाश में
सूखी रेत पर रगड़ाता
अनछुआ मन
भीतर के अंनकहे भावों को उकेरती रचना। बधाई और शुभकामनायें प्रिय श्वेता ।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत संदर
ReplyDeleteबूँद भर तृप्ति की चाह ... वाह सत्य!! हां बूंद भर तृप्ति की तृष्णा ही तो मृग सी भटकन देता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ,गहन एहसास समेटे अतृप्त मन का सुंदर तृप्त सृजन।्््
सस्नेह
सुंदर रचना
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