शलभ मैं शापमय वर हूँ !
किसी का दीप निष्ठुर हूँ !
ताज है जलती शिखा
चिनगारियाँ शृंगारमाला;
ज्वाल अक्षय कोष सी
अंगार मेरी रंगशाला;
नाश में जीवित किसी की साध सुंदर हूँ !
नयन में रह किंतु जलती
पुतलियाँ आगार होंगी;
प्राण मैं कैसे बसाऊँ
कठिन अग्नि-समाधि होगी;
फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मंदिर हूँ!
हो रहे झर कर दृगों से
अग्नि-कण भी क्षार शीतल;
पिघलते उर से निकल
निश्वास बनते धूम श्यामल;
एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ !
कौन आया था न जाना
स्वप्न में मुझको जगाने;
याद में उन अँगुलियों के
है मुझे पर युग बिताने;
रात के उर में दिवस की चाह का शर हूँ !
शून्य मेरा जन्म था
अवसान है मूझको सबेरा;
प्राण आकुल के लिए
संगी मिला केवल अँधेरा;
मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ !
-महादेवी वर्मा
मूल रचना
मूल रचना
मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ !
ReplyDelete.....नमन🙏🙏🙏🙏
वाह!साँझा करने हेतच धन्यवाद यशोदा जी ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 27 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमहादेवी जी की कालजयी रचनायें
ReplyDeleteबेहद सुंदर
वाह!!!
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏
वाह ......अद्भुत
ReplyDeleteअद्भुत !!
ReplyDeleteकितना दर्द।
सारगर्भित सुंदर ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3715 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह महादेवी जी की कालजयी रचना
ReplyDeleteवाह!लाजवाब 🙏
ReplyDeleteअद्भुत ...👌👌👌👌
ReplyDeleteअद्वितीय रचना है युगलेखिका महादेवी वर्मा जी की ।
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