बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो ,
है अवरुद्ध कंठ ,सजल नयन
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
कम्पित अंतर्मन -कर रहा प्रश्न -
बोलो माँ आज कहाँ तुम हो ?
जिसमें समाती थी धार
मेरे दृग जल की,
खो गई वो छाँव
तेरे आँचल की ;
जीवन रिक्त स्नेहिल स्पर्श बिन
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
हुआ आँगन वीरान माँ तुम बिन -
घर बना मकान माँ तुम बिन ,
रमा बैठा धूनी यादों की -
मन श्मशान बना माँ तुम बिन -
किया चिर शयन -चली मूँद नयन -
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
तेरा अनुपम उपहार ये तन -
साधिकार दिया बेहतर जीवन --
तेरी करुणा का मैं मूर्त रूप -
तेरे स्नेहाशीष संचित धन ;
ले प्राणों में थकन निभा जग का चलन-
बोलो माँ ! आज कहाँ तुम हो !!!!!!
-रेणुबाला
माँ शब्द ममता का संपूर्ण अर्थ है।
ReplyDeleteनिश्छल प्रेम का इस सृष्टि में इससे बढ़कर कोई प्रतीक नहीं है।
जी दी बेहद सूक्ष्मता से पिरोये मनोभाव मन तरल कर रहे हैं।
मर्मस्पर्शी सुंदर सृजन दी।
सादर।
हार्दिक आभार प्रिय श्वेता 🙏🌹🌹
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार ओंकार जी 🙏🙏
Deleteतेरी करुणा का मैं मूर्त रूप - ... माँ कभी मरती ही नहीं .. अनवरत जीवित रहती हैं पीढ़ी दर पीढ़ी ... उन के दूध बहते हैं रगों में ...
ReplyDeleteसादर आभार सुबोध जी ,रचना के मर्म
Deleteतक पहुँचने के लिए🙏 🙏
तेरा अनुपम उपहार ये तन -
ReplyDeleteसाधिकार दिया बेहतर जीवन --
तेरी करुणा का मैं मूर्त रूप -
तेरे स्नेहाशीष संचित धन ;
माँ को चंद शब्दों में समेटना मुश्किल हैं मगर तुमने वो बाखूबी किया हैं सखी ,ह्रदयस्पर्शी सृजन ,सादर स्नेह
हार्दिक आभार सखी 🙏🙏🌹🌹
Deleteहुआ आँगन वीरान माँ तुम बिन -
ReplyDeleteघर बना मकान माँ तुम बिन ,
रमा बैठा धूनी यादों की -
मन श्मशान बना माँ तुम बिन -
किया चिर शयन -चली मूँद नयन -
बोलो ! माँ आज कहाँ तुम हो ?
सही कहा माँ है तो सब है माँ को शब्दबद्ध करना नामुमकिन है माँ के बिना घर सिर्फ मकान है और ये मन श्मशान है बहुत ही उत्कृष्ट सृजन है रेणु जी का ....उनके सभी उम्दा सृजन में से एक।
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं सखी!
हार्दिक आभार प्रिय सुधा जी 🙏🙏
Deleteमाँ की बराबरी दुनिया में कोई नहीं कर सकता। माँ के प्रति अपनी भावनाओं को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं आपने, रेणु दी।
ReplyDeleteसादर आभार बड़े भैया 🙏 🙏
ReplyDeleteसादर आभार निशा जी 🙏
ReplyDeleteसादर आभार ज्योति जी 🙏🙏
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