हवाओं सा जब से वो छू कर गया है
मेरी रूह तक को वो महका गया है
सजाया है किसने "अयान" मेरे घर को
मेरे अंगना ये कौन आ गया है
कुछ ऐसे है रौशन तेरे नूर से हम
यूँ लगता है दिल मे खुदा आ गया है
महफ़िल सी ले के मेरे जहन ओ दिल मे
तेरी यादों का कारवां आ गया है
कुछ तो असर था मेरी चाहतों में
वो हो के सब से जुदा आ गया है.
-नामालूम
वाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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