बुझी नजरें ना चुरा,मुझे अपना गम तो बता,
भींगी पलकें ना झुका,मुझे तेरा हाल है पता।
मैं सारी दुनियां से लड़ जाऊँगा सनम तेरे लिए,
मैं तो हद से भी गुजर जाऊँगा सनम तेरे लिए।
मैं अपना आशियाना बनाऊँगा तेरे पलकों के तले,
अब जीऊँगा और मरूँगा तेरे पलकों के तले।
तूँ जो पलकें उठाती है तो मेरी सुबह होती है ,
तूँ जो पलकें झुकाती है तो मेरी शाम ढलती है।
तेरी पलकों के तले मेरे अरमान पलते हैं,
तेरी पलकों के तलेउम्मीदों के दीप जलते हैं।
तेरी भींगी हुई पलकें मुझे झकझोर देती हैं,
तेरी भींगी हुई पलकें क्यूँ दिल को तोड़ देती हैं।
भींगी पलकें ना झुकाओ मेरी धड़कन ना थम जाए,
भींगी पलकें ना झुकाओ मेरी साँसे ना रूक जाए।
लाऊँगा सनम तुझको मैं तुझसे ही चुरा के,
रखूँगा सनम तुझको सदा पलकों पे बिठा के।
-पूनम सिन्हा
देवघर,झारखंड।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन।
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