Tuesday, May 26, 2020

अभिव्यक्तियां ... ना-मालूम


शब्दों की अनुभूति...
जो कह दिया वे शब्द थे
जो न कह सके वो अनुभूति थी
और ..जो कहना है मगर
कह नहीं सकते
वो मर्यादा है
.....

जिंदगी....
जिन्दगी क्या है
आकर नहाया
और नहाकर चल दिया
....

पत्ते....
पत्तों सी होती है
रिश्तों की उम्र
आज हरे...
कल सूखे...
क्यों न हम
जड़ों से रिश्ते निभाना सीखें
...

निबाह...
रिश्तों के निभाने के लिए,
कभी अंधा,
कभी बहरा,
और कभी बहरा
होना ही पड़ता है
....

गर्मी...
बरसात गिरी और कानों
में इतना कह गई कि
गर्मी हमेशा
किसी की भी नही रहती
....

नसीहत....
नर्म लहजे में ही
अच्छी लगती है नसीहत.
क्योंकि,
दस्तक का मतलब
दरवाजा खुलवाना होता है
उसे तोड़ना नहीं
.....

घमण्ड..
किसी का न रहा,
टूटने से पहले
गुल्लक को भी लगता है कि
सारे पैसे उसी के हैं
....

खूबसूरत बात...
जिस बात पर,
कोई मुस्कुरा दे,
बस वही खूबसूरत है..
....

अपने...
थमती नहीं,
ज़िंदगी कभी,
किसी के बिना.
मगर हम भी नहीं,
अपनों के बिना
- नामालूम


1 comment:

  1. एक एक रचना जैसे मोती है यशोदा जी। शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती कितना अच्छा लगा इतने दिन बाड़ इतनी अच्छी रचनाएँ पढ़ कर। धन्यवाद!

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