Sunday, May 24, 2020

चन्द अपनो की तलाश होती है ...कात्यायनी गौड़

वो होतीं है ना
कुछ लड़कियां,
जिन्हें पंक्ति के अंत मे दिखते है
प्रश्नचिन्ह ना की पूर्णविराम

वो
जिन्हें संस्कारी और मूक बधिर
होने में अंतर मालूम
होता है

वो जो
धार्मिक नहीं आध्यात्मिक
होने में विश्वास रखतीं हैं

जिन्हें भीड़ नहीं
चन्द अपनो की
तलाश होती है

जो किसी भी कार्य के
अंत का सोच कर
आरम्भ करने से
पीछे नहीं हटतीं

जो सही दूसरो का
और गलती अपनो
की भी बताती हैं

हाँ वो ही लड़कियाँ ,
हकदार है ये बताने को
कि लड़कियाँ कैसी होनी चाहिए
© कात्यायनी गौड़

7 comments:

  1. "जिन्हें संस्कारी और मूक बधिर
    होने में अंतर मालूम
    होता है" ...
    "धार्मिक नहीं आध्यात्मिक
    होने में विश्वास रखतीं हैं"...
    और
    "जिन्हें भीड़ नहीं
    चन्द अपनो की
    तलाश होती है"...
    बिना किसी क्लिष्ट शब्दों का इस्तेमाल किए, बिना किसी भारी-भरकम लाग-लपेट के, लिक से हट कर,
    कटु सत्य बयान करती .. कईयों को अपच कराने वाली रचना .. कात्यायनी जी की क्रांतिकारी मन की बातें ...

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. क्या बात कही है कात्यायनी जी इसका न कोई तोड़ है और न ही कोई पर्याय ... बहुत उम्दा सोच 👌👌👌👌

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