Saturday, November 9, 2019

अपना बना कर देखो ना ..निधि सक्सेना

ग़ैरों को अपना बनाने का हुनर है तुममें
कभी अपनो को अपना बना कर देखो ना..

ग़ैरों का मन जो घड़ी में परख लेते हो
कभी अपनो का मन टटोल कर देखो ना..

माना कि ग़ैरों संग हँसना मुस्कुराना आसां है
कभी मुश्किल काम भी करके देखो ना..

कामकाजी बातचीत ज़रूरी है ज़माने से
कभी अपनो संग ग़ैरज़रूरी गुफ़्तगू भी कर देखो ना ..

इतने मुश्किल नहीं जो अपने हैं
कभी मुस्कुरा कर हाथ बढ़ा कर देखो ना..
चित्र कविताकोश से
-निधि सक्सेना
फेसबुक से

2 comments:

  1. "...
    ग़ैरों को अपना बनाने का हुनर है तुममें
    कभी अपनो को अपना बना कर देखो ना..

    कामकाजी बातचीत ज़रूरी है ज़माने से
    कभी अपनो संग ग़ैरज़रूरी गुफ़्तगू भी कर देखो ना
    ..."

    जीवन के भागदौड़ में हम अपनों को समय देना भूल जाते हैं। इस रचना में मैं स्वयं को देख रहा हूँ। अप्रतिम।

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