Sunday, November 17, 2019

मां .....विभूति गोण्डवी

कैसे लिखूं,
मां पर,
निःशब्द हो जाता हूं मैं,
ज्ञान शून्य हो जाता हूं मैं ।

कैसे लिखूं,
मां पर,
कोई शब्द ही नही,
जो मां को परिभाषित कर सके ।

कैसे लिखूं,
मां पर,
मां के त्याग को,
कैसे कोई परिभाषित कर सकता है ।

कैसे लिखूं,
मां पर,
मां के दर्द को,
कैसे कोई परिभाषित कर सकता है ।

मां वो कल्पवृक्ष  है,
जिसकी छांव में ही ये जीवन गुलज़ार है,
नहीं तो ये जीवन,
बेजान है ।
-विभूति गोण्डवी

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