Tuesday, November 12, 2019

आहट जो तुमसे होकर मुझ तक आती है ...स्मृति आदित्य


रिश्तों की बारीक-बारीक तहें
सुलझाते हुए
उलझ-सी गई हूं,
रत्ती-रत्ती देकर भी
लगता है जैसे
कुछ भी तो नहीं दिया,
हर्फ-हर्फ
तुम्हें जानने-सुनने के बाद भी
लगता है
जैसे अजनबी हो तुम अब भी,

हर आहट
जो तुमसे होकर
मुझ तक आती है
भावनाओं का अथाह समंदर
मुझमें आलोड़‍ित कर
तन्हा कर जाती है।

एक साथ आशा से भरा,
एक हाथ विश्वास में पगा और
एक रिश्ता सच पर रचा,

बस इतना ही तो चाहता है
मेरा आकुल मन,
दो मुझे बस इतना अपनापन...
बदले में
लो मुझसे मेरा सर्वस्व-समर्पण....
-स्मृति आदित्य 'फाल्गुनी'
वेब दुनिया से


8 comments:

  1. रिश्तों के ताने बाने में एक छोटी सी ख्वाहिश ,वाह बेहद खूबसूरत

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  2. बहुत सुंदर समर्पित भावों की सरस प्रस्तुति।

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  3. मेरे मन के भाव को कहती इस रचना के कुछ पंक्तियाँ-

    "दो मुझे बस इतना अपनापन...
    बदले में
    लो मुझसे मेरा सर्वस्व-समर्पण...."

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  4. वाह!!!
    बहुत सुन्दर रचना...

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना

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  6. धन्यवाद सबको... आभारी हूं...

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