Thursday, November 14, 2019

एक बार पा तो लूँ, उसे ....रत्ना सिन्हा

मंज़िलों को पाने का मज़ा भी तभी है
जब तक वो ना मिले;
मिल जाये वो अगर तो लगता है
जैसे ख़्वाब कोई हक़ीक़त बन गए।
और, ना मिले वो अगर तो लगता है
जैसे ज़मीन-आसमां सब इक कर दूँ।
चाँद-सितारे भी तोड़ डालूँ, पर
एक बार पा तो लूँ, उसे।

चाहे जैसा भी हो वो, हर उपाए कर लूँ,
मंदिर-मस्जिद-चर्च-गुरूद्वारे के चक्कर भी ,
चाहे जितनी बार हो सके लगा लूँ।
पंडित-ज्योतिष-फ़क़ीर ने तो, न जाने
कितनी बार हाथों की लकीरें भी पढ़ी हो;
उसे पाने की चाह इतनी प्रबल हो जाती
कुछ भी कर गुज़रने को जी चाहता, बस
एक बार पा तो लूँ, उसे।

उसे पाने की कोई कसर बाकी न रह जाए,
ऐसी चाहत मात्र से ही हिम्मत और हौसले भी
सिर चढ़ कर बोलने लग जाते हैं जब,
तुन्हें न पाने की भी कोई गुंजाइश ही नहीं तब
हर वो मुसीबत मोल ली, बस
एक बार उसे पाने की जिद्द् ने
फिर, कितने जंग लड़े हो जैसे
पाकर मंज़िल भी धन्य हो गए वैसे!
-रत्ना सिन्हा

4 comments:

  1. उसे पाने की कोई कसर बाकी न रह जाए,
    ऐसी चाहत मात्र से ही हिम्मत और हौसले भी
    सिर चढ़ कर बोलने लग जाते हैं
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. सिर चढ़ कर बोलने लग जाते हैं जब,
    तुन्हें न पाने की भी कोई गुंजाइश ही नहीं तब

    bilkul sahii

    wo mzaa kahaan vasl e yaar me ...lutf jo mila intzaar me

    bahut khoobsurat rchnaa

    bdhaayi

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