क्या परिभाषा हो सकती है,
चाँद -से मुखड़े की,
वो जो वासना की ओर
धकेलता है
या फिर वो
जो वासना से पार ले जाता है,
विश्व के सारे प्रेमी
सुन्दर तन, सुन्दर सूरत
को कहते है
चाँद- सा मुखड़ा
लेकिन मै सहमत नहीं
इस उपमा से
चाँद-सा मुखड़ा बनने
के लिए त्यागना
पड़ता है अपना सर्वस्व
जीवन -धारा
तब जाकर बनती है, सीता
तब जाकर बनती है, अहल्या
तब जाकर बनती है, तुलसी
तब जाकर बनती है, गीता
नामों में क्या रखा है जनाब
अपनी कस्तूरी को खोजिए
और आप भी बन जाइए
चाँद -सा मुखड़ा
किसी जिंदगी का टुकड़ा
-ज्योति नामदेव
वाह!!लाजवाब!
ReplyDeleteवाह गजब।
ReplyDeleteवाह 'चाँद सा मुखड़ा की एक नई परिभाषा , नई सोच ,बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबेहद उम्दा....
ReplyDeleteआपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|
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