धूप की उंगलियों ने
छू लिया अलसाया तन
सर्द हवाओं की शरारतों से
तितली-सा फुदका मन
तन्वंगी कनक के बाणों से
कट गये कुहरीले पाश
बिखरी गंध शिराओं में
मधुवन में फैला मधुमास
मन मालिन्य धुल गया
झर-झर झरती निर्झरी
कस्तूरी-सा मन भरमाये
कंटीली बबूल छवि रसभरी
वनपंखी चीं-चीं बतियाये
लहरों पर गिरी चाँदी हार
अंबर के गुलाबी देह से फूट
अंकुराई धरा, जागा है संसार
-श्वेता
सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
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