मैं गुलों के जैसा महकता नहीं हूँ।
सितारा हूँ लेकिन चमकता नहीं हूँ।।
ज़माना ये समझे कि खोटा हूँ सिक्का,
बाज़ारों में इनकी मैं चलता नहीं हूँ।
यूँ तो अंधेरों से जिगरी है यारी,
मैं ऐसा हूँ सूरज कि ढलता नहीं हूँ।
सफ़र पे जो निकला तो मंज़िल ज़रूरी,
यूँ राहों में ऐसे मैं रुकता नहीं हूँ।
उम्मीद-ए-वफ़ा ने है तोड़ा मुझे भी,
मैं आशिक़ के जैसा तड़पता नहीं हूँ।
कोशिश में ज़ालिम की कमी नहीं थी,
मैं पहले ही राख हूँ जलता नहीं हूँ।
मयखानों की रौनक है शायद मुझी से,
मैं कितना भी पी लूँ बहकता नहीं हूँ।
सूरत से ज़्यादा मैं सीरत को चाहूँ,
रुख़सारों पे चिकने फिसलता नहीं हूँ।
मुसीबत से अक़्सर कुश्ती हूँ करता,
है लोहा बदन मेरा थकता नहीं हूँ।
मिट्टी का बना हूँ ज़मीं से जुड़ा हूँ,
खुले आसमानों में उड़ता नहीं हूँ।
हुनर पार करने का सीखा है मैंने,
बीच भँवर अब मैं फंसता नहीं हूँ।
'मौन' भला हूँ ना छेड़ो मुझे तुम,
मैं यूँ ही किसी के मुँह लगता नहीं हूँ।
- अमित मिश्रा 'मौन'
बहुत खूब!
ReplyDeleteअद्भुत।।