Friday, July 19, 2019

आँखों की अनदेखी लिपियाँ..रश्मि शर्मा


कही तुमने 
बार-बार वो बातें
जिनका मेरे लिए
न कोई अर्थ है
ना ही अस्तित्व

जो मैं पढ़ना चाहूँ
तुम्हारी आँखों की 
अनदेखी लिपियाँ
कहो, कौन सी कूट का
इस्‍तेमाल करूं !

ढूंढ रही हूँ 
कोई ऐसा स्रोत
ऐसी किताब
जो नयनों की भाषा को
शब्‍दों में बदलती हो

है ये ईसा पूर्व की, या
सोलहवीं सदी 
की सी बात
कि हमारे बीच से
शब्‍द अदृश्‍य ही रहे हैं

अब तुम पढ़ना
मेरा मौन, देखना 
मेरी अनवरत प्रतीक्षा
अब मैं कूट-लिपिक बन
पढूंगी बस
आँखों की अनदेखी लिपियाँ...। 

-रश्‍मि शर्मा
मूल रचना

7 comments:

  1. लिपि रहित है आंखों की लिपि
    अद्भुत

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20 -07-2019) को "गोरी का शृंगार" (चर्चा अंक- 3402) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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  3. बहुत सुंदर सृजन।

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  4. वाह बेहतरीन रचना अद्भूत।

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  5. वाह! एक पंक्ति याद आ गयी:-
    आली मैं हर गयी, अंखियन के खेल में!

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