Monday, July 15, 2019

तपती दुपहरी......शुभा मेहता

जेठ की इस 
तपती दुपहरी में
हाल -बेहाल
पसीने से लथपथ 
जब काम खत्म कर 
वो निकली बाहर 
घर जाने को 
बडी़ गरमी थी 
प्यास से गला 
सूखा.......
घर पहुँचने की जल्दी थी 
वहाँ बच्चे कर रहे थे 
इंतजार उसका 
सोचा ,चलो रिक्षा कर लूँ
फिर अचानक बच्चों की 
आवाज कान में गूँजी..
"माँ ,आज लौटते में 
तरबूज ले आना 
गरमी बहुत है 
मजे से खाएंगे"
और उसके कदम 
बढ़ उठे उधर 
जहाँ बैठे थे 
तरबूज वाले
सोचा ,बच्चे कितने खुश होगें 
मैं तो पैदल ही 
पहुंच जाऊँगी ...
पसीना पोंछ 
मुस्कुराई ...
तरबूज ले 
चल दी घर की ओर ......माँँ जो थी

लेखक परिचय - शुभा मेहता 

9 comments:

  1. अत्यंत सुन्दर और हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  2. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी रचना शुभा बहन ।
    सच मां ही तो है।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-07-2019) को "बड़े होने का बहाना हर किसी के पास है" (चर्चा अंक- 3398) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. माँ का दिल ऐसा ही होता है..भावपूर्ण

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  5. बहुत-बहुत धन्यवाद संजय जी ,मेरी रचना को मेरी धरोहर तक लाने के लिए 🙏

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  6. वाह ! बहुत ही सुन्दर रचना प्रिय सखी
    सादर

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  7. शुभा दी,ऐसा सिर्फ़ एक माँ ही कर सकती हैं। सुंदर रचना।

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