कुछ यूँ लगा जैसे कोई अपना चला गया !
खाली पड़ा हुआ था, जो मुद्दत से बंद था
रहकर उसी मकान में मेहमां चला गया !
ले गया कोई हमें, हमसे ही लूटकर
इक अजनबी के संग दिल-ए-नादां चला गया !
आँखें तो कह रही थीं, रोक लो अगर चाहो
जाने के बाद फिर ये ना कहना - चला गया !
मंज़िल को ढ़ूँढ़ती रहीं कुछ गुमशुदा राहें
ना जाने कब, यहाँ से कारवां चला गया !
वो शौक, वो फ़ितूर, वो दीवानगी कहाँ ?
बारिश में भीगने का जमाना चला गया !
अब घोंसलों को तोड़कर बनते हैं घरौंदे
चिड़िया का इस शहर से आशियां चला गया !!!
लेखक परिचय - मीना शर्मा
वाह !बेहतरीन सृजन प्रिय मीना दी जी
ReplyDeleteआप की हर रचना कमाल की होती है
सादर
वाह
ReplyDeleteकमाल है
ReplyDeleteबहुत खूब
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