ये सोलह श्रृंगार है, अभिसार के लिये।
ये चितवन इज़हार है, इक़रार के लिये॥
ये चूड़ी की खनक,
ये बिंदी की चमक।
ये माला की लटक,
ये पायल की छमक॥
ये प्रीत मनुहार है, दिलदार के लिये।
ये मेहंदी की महक,
ये माहुर की चहक।
ये काजल की दहक,
ये कुंकुम की कहक॥
ये अमृत बयार है, सत्कार के लिये।
ये सपनों की लचक
ये लज्जा की कसक।
ये रिश्ते की भनक,
ये अपनों की झलक॥
ये अंतर पुकार है,दीदार के लिये।
-नरेंद्र श्रीवास्तव
अति सुन्दर!!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-07-2019) को "संस्कृत में शपथ लेने वालों की संख्या बढ़ी है " (चर्चा अंक- 3384) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर शृंगार रचना। सुंदर शब्द विन्यास ।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर सरस सजी- धजी रचना।
ReplyDeleteअत्यंत मधुर मोहक रचना...
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