क्यों है ये उम्मीद वो मंज़र मिलेगा
तुम गले लगना तो बख्तर-बंद पहने
दोस्तों के पास भी खंज़र मिलेंगा
कूदना तैयार हो जो सौ प्रतीशत
भूल जाना की नया अवसर मिलेगा
इस शहर में ढूंढना मुमकिन नहीं है
चैन से सोने को इक बिस्तर मिलेगा
देर तक चाहे शिखर के बीच रह लो
चैन धरती पर तुम्हे आकर मिलेगा
बैठ कर देखो बुजुर्गों के सिरहाने
उम्र का अनुभव वहीं अकसर मिलेगा
मन से मानोगे तो खुद झुक जाएगा सर
यूँ तो हर मंदिर में बस पत्थर मिलेगा !!
लेखक परिचय - दिगंबर नासवा
वाह !बेहतरीन 👌👌
ReplyDeleteसादर
बैठ कर देखो बुजुर्गों के सिरहाने
ReplyDeleteउम्र का अनुभव वहीं अकसर मिलेगा
वाह !! बहुत खूब !!
वाह
ReplyDeleteवाह!!लाजवाब सृजन दिगंबर जी ।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteबधाई नासबा जी
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3400 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
Bahut, bahut umda! Har sher par Wah nikalta hai.
ReplyDelete@मन से मानोगे तो खुद झुक जाएगा सर, यूँ तो हर मंदिर में बस पत्थर मिलेगा......
ReplyDeleteबहुत खूब !