Sunday, July 21, 2019

पहाड़ी (कुमाउँनी बोली) हाइकु..... कमला निखुर्पा


दैणा होया रे 
खोली का गणेशा हो 
सेवा करूंल ।
(1-अर्थ= दैणा होया= (कृपा करना),  
खोली =(मुख्य द्वार पर स्थापित)
2
दैणा होया रे
पंचनाम देवता
असीक दिया ।
( 2- असीक =आशीष)
3
मेरो पहाड़
हरयूँ  छ भरयूँ
आंख्यों मां  बस्युं ।
(3- अर्थ -हरयूँ  छ भरयूँ =हराभरा है)
4
बुरांशी फूली
डांडा कांठा सजी गे
के भल लागी ।
(4- बुरांश =एक पहाड़ी पुष्प, 
डांडा कांठा =पहाड़ का कोना कोना, 
भल =सुन्दर )
5
पाक्यो हिसालू
बेरू काफल पाक्यो
घुघूती बास्यो ।
 (5-हिसालू, बेरू ,काफल = पहाड़ी जंगली फल ,
घुघूती =पहाड़ी कबूतर,  बास्यो=गाता है  )

6
मुरूली बाजी
हुड़का ढमाढम
आयो बसंत ।
6- हुड़का = पहाड़ी वाद्ययंत्र 
(जो शिवजी के डमरू की तरह दिखता है)
7
गाओ झुमैलो
चाचरी की तान माँ
ताल मिलैलो ।
 (7-झुमैलो ,चाचरी =
पहाडी गीत जिसमें कदम से कदम मिलाकर 
समूह में नृत्य करते हैं।)
8
पीली आँङरी
घाघरी फूलों वाली
लागे आँचरी।
 ( 8- आँङरी = अँगिया(कुर्ती), 
आँचरी= परी  )
9
ओ री आँचरी
घर, खेत, जंगल
त्वीले सँवारी।
 (9- त्वीले = तुमने )
10-
मेरी बौराण
लोहा की मनख तू
हौंसिया पराण ।
(10- बौराण= बहुरिया(बहू), 
मनख =मनुष्य, 
हौंसिया पराण = जिंदादिल,हँसमुख)
11
छम छमकी
घुँघराली दाथुली
डाणा कांठा मां ।
[11- घुंघराली = घुंघरू लगे हुए , 
दाथुली= हँसिया(घास काटने का औजार)]
12
ओ री घसेरी
गाए तू जब न्योली
भीजी रे प्योंली ।
(12-घसेरी = घसियारिन,  
न्योली= विरहगीत/एक पक्षी,   
प्योंली=पीला पहाडी पुष्प )
13
पीठ पे बोझ
आँखें हेरे हैं बाट 
सिपाही स्वामी ।
14
धन्य हो तुम
धन्य हिम्मत तेरी
प्यारी घुघूती ।

15
तू शक्तिरूपा
इजा, बेटी, ब्वारी तू
तू वसुंधरा ।
(15 इजा=माँ , ब्वारी=बहू )

16
ऊँचा हिमाल
ऊँचो सुपन्यू तेरो
पूर्ण ह्वे जाल ।
( 16- सुपन्यू =सपना )
-कमला निखुर्पा

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-07-2019) को "आशियाना चाहिए" (चर्चा अंक- 3404) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर... पहाड़ों की महक समेटे..।

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  3. बहुत ही सुंदर... लाजवाब...
    वाह!!!

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  4. साहित्यिक रचनाओं का माधुर्य भाषा से परे होता है।
    बहुत अच्छी रचना ढूँढकर लायी हैं दी।

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