Wednesday, July 3, 2019

दूषित हवा.......साधना वैद


कितना भी चाहे वह बचना
कितना भी चाहे मुँह फेरना  
गाहे बगाहे रोज़ ही उसकी  
मुलाक़ात हो जाती है,
उस सबसे जिससे वह  
पूरी शिद्दत से दूर बहुत दूर
रहना चाहती है  
लेकिन लाख कोशिश करने पर भी
बचने की कोई और सूरत
निकाल नहीं पाती है !
बचना चाहती है वह
उस कड़वाहट से
जो इन दिनों तुम्हारी वाणी का
आभूषण बन गयी है,
और जिसकी कर्णकटु खनक
उसकी बर्दाश्त के बाहर हो गयी है !  
उस नफरत से
जो तुम्हारे छोटे से दिल की
बहुत थोड़ी सी जगह में   
समा न सकने की वजह से
अक्सर ही बाहर छलक जाती है,
और घर में सबके
सुखमय संसार को
पल भर में ही
विषमय कर जाती है !
उस तल्खी से
जिसे इन दिनों शायद
तुमने अपनी ढाल बना लिया है,
और उस कवच की आड़ में
तानों उलाहनों के तीक्ष्ण बाण चला
सबके कोमल दिलों को
तीरंदाजी का पटल बना लिया है !
उस अजनबियत से
जिसे ओढ़ कर तुम अपनी
बदसूरती को सायास
ढकने का प्रयास करते हो,
और अपनी हर बेढंगी चाल से
परत दर परत खोल-खोल कर  
खुद को ही उघाड़ा करते हो !
कितना मुश्किल हो गया है
इतनी दूषित हवा में साँस लेना  
ताज़ी हवा के एक झोंके की
सख्त दरकार है कि
दम घुटने से
कुछ तो राहत मिले
कुछ तो साँसें ठिकाने से आयें
कुछ तो जीने की चाहत खिले !


लेखक परिचय - साधना वैद

8 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, साधना दी।

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  2. बहुत सुन्दर सृजन ।

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  3. स्वयं को यहाँ पाकर बहुत उल्लसित हूँ ! हार्दिक धन्यवाद संजय ! आपने आज मुझे आम से ख़ास बना दिया ! आभार आपका !

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3386 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3386 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  6. सुन्दर सृजन आभार आपका

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  7. बहुत ही सुन्दर सृजन
    सादर

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