ममता महकती बहकती कभी,
सौंधी गंध-सी बौछार कभी।
अंकुरित नव अंकुर कोमल
फुहार से होते विभोर,
कुम्हलाई आभा पर बाढ़ कभी,
सौंधी गंध-बौछार कभी।
मूक साधना ढलता सूरज,
गहराती स्याही बेबसी लेकर।
नील नभ से उठती गुहार कभी,
सौंधी गंध-बौछार कभी।
तपती जेठ में घनी छाया,
सहरा में हरा-भरा उपवन।
सूखे होठों पर तरल दुलार कभी,
सौंधी गंध-बौछार कभी।
-डॉ. प्रेम लता चसवाल 'प्रेमपुष्प'
वाह बहुत सुन्दर ममता सी सम्मोहित।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-06-2018) को "मत सीख यहाँ पर सिखलाओ" (चर्चा अंक-2991) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
वाह प्रेमलता जी वाह ....
ReplyDeleteसौंधी गंध बौछार कभी
माँ केसर सी बयार कभी
नमन
वाह सुन्दर रचना
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