![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhszQYgSXk_orWMhJ9l2vSIxFblAEzKwC5gi2amV6x-yzlED9iSYCcaP3aAsnGC8HgKrw9BqofaFCwmckY_4yKUL-K3Xs6YGlSDxB_jhOMv5FKzFH2HKkpa7Uynmk72gsyCZFs4qYq2VYc/s1600/%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%9B%E0%A4%B2%E0%A5%87+%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%E2%80%8D+%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%96%E0%A5%80.jpg)
अक्सर पिछले पन्नों में ही
लिखी जाती है कोई कविता
फिर ढूंढती है अपने लिए
एक अदद जगह
उपहारस्वरूप दी गई
किसी डायरी में
फिर किसी की जुबां में
फिर किसी नामचीन पत्रिका में
फिर भी न जाने क्यों
भटकती फिरती है ये मुसाफिर
खुद को पाती है एकदम प्यासा
अचानक इस रेगिस्तान में
उठते बवंडर संग उड़ चलती हैं ये
बवंडर थककर खत्म कर देता है
अपना सफर
लेकिन ये उड़ती जाती हैं
और फैला देती है
अपना एक-एक कतरा
उस अनंत में जो रहस्यमयी है।
लेकिन एक खास बात
इसके बारे में,
आगोश से इसके चीजें
गायब नहीं होतीं
और न ही होती है
इनकी इससे अलग पहचान
लेकिन यह कविता
शायद! अपने जीवनकाल में
सबसे ज्यादा खुश होती है
यहां तक पहुंचकर
क्योंकि
ब्रह्माण्ड के नाम से जानते हैं
हम सब इसे।
-तिथि दानी
वाह!!लाजवाब!!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-06-2018) को "मौसम में बदलाव" (चर्चा अंक-2999) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब कविता पर कविता।
ReplyDelete