Wednesday, June 20, 2018

अकुरित आशाएँ..........सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न'

मेरी आत्मा की बंजर भूमि पर,
कठोरता का हल चला कर,
तुमने ये कैसा बीज बो दिया? 
क्या उगाना चाहते हो 
मुझमें तुम,

ये कौन अँगड़ाई सी लेता है, 
मेरी गहराइयों में,
कौन खेल सा करता है,
मेरी परछाइयों से,

क्या अंकुरित हो रहा है इन अंधेरों से...?
क्या उग रहा है सूर्य कोई पूर्व से???

-सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न'

3 comments:

  1. सुंदर रचना गहराई लिये ।

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  2. वाह!!खूबसूरत रचना।

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  3. वाह विचारणीय उन्वान ...👌👌👌👌

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