आज तुम
इतनी बड़ी हो गयी हो
कि मुझे तुम से
सर उठा कर
बात करनी पड़ती है
सच कहूं तो
बहुत फ़ख्र महसूस करती हूँ
जब तुम्हारे और मेरे
रोल और सन्दर्भ
बदले हुए देखती हूँ
आज तुम्हारा हाथ
मेरे कांधे पर और
कद थोड़ा निकलता हुआ
कभी मेरी ऊँगली और
तुम्हारी छोटी सी मुट्ठी हुआ करती थी
हम तब भी हम ही थे
हम अब भी हम ही हैं
-मंजू मिश्रा
हम तब भी हम ही थे
ReplyDeleteहम अब भी हम ही हैं - kitni sundar Rachna hai ye!
अापको रचना पसंद अाई, बहुत अाभार !
Deleteसादर
मंजु मिश्रा
www.manukavya.wordpress.com
वाह कोमल और सुंदर भाव पुत्री गर्विता मां का विश्वास
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम कोठारी जी !
Deleteवाह कितना सहज लेखन हर माँ के मन का स्पंदन !
ReplyDeleteधन्यवाद इंदिरा !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-06-2018) को "उपहार" (चर्चा अंक-3012) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
धन्यवाद राधा तिवारी जी !
Deleteपुत्री गर्विता माँ के मन का सरल ,सहजऔर सुंदर हृदयस्पर्शी वात्सल्य भरा उद्वेग !!!!!!!माँ बेटी का रिश्ता अटूट है | सस्नेह -----------
ReplyDeleteधन्यवाद रेनू जी !
Deleteवाह जी क्या बात
ReplyDeleteधन्यवाद रेवा जी !
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