मैं ख़्वाब हूँ मुझे ख़्वाब में ही प्यार कर
पलकों की दुनिया में जी भर दीदार कर
न देख मेरे दर्द ऐसे बेपर्दा हो जाऊँगी
न गिन जख़्म दिल के,रहम मेरे यार कर
बेअदब सही वो क़द्रदान है आपके
न तंज की सान पर लफ़्ज़ों को धार कर
और कितनी दूर जाने आख़िरी मुक़ाम है
छोड़ दे न साँस साथ कंटकों से हार कर
चूस कर लहू बदन से कहते हो बीमार हूँ
ज़िंदा ख़ुद को कहते हो,ज़मीर अपने मारकर
-श्वेता सिन्हा
बहुत खूब !!
ReplyDeleteआफरीन श्वेता जी ...बेअदब ही सही वो कद्रदान है आपके .....क्या फलसफा पकड़ा है ....बहुत खूब
ReplyDeleteहर शेर मैं तंज है हर लफ्ज में धार
कट जाये पत्थर का जिगर अहसास है तेज कटार
प्रिय श्वेता जी ......
ReplyDeleteइश्क इश्क है सुन सखी खाला का घर नाय
रहम कहा इस प्यार मैं घायल दिल करि जाय
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-06-2018) को "करना ऐसा प्यार" (चर्चा अंक-3010) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन,शानदार
Deleteमैं ख़्वाब हूँ मुझे ख़्वाब में ही प्यार कर
ReplyDeleteपलकों की दुनिया में जी भर दीदार कर-------
वाह और सिर्फ वाह प्रिय श्वेता !!!!! लगता है मेरी बहन का नाम अब उर्दू अदब में बहुत चमकने वाला है | रचना जानलेवा है !!!! शुभकामनाओं के साथ मेरा बहुत प्यार |
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत
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